Tuesday, May 30, 2023
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प्रयागराज माघ मेला 2023: जानिए महत्व, स्नान प्रमुख तिथि और नियम

Magh Mela 2023 Prayagraj: पौष पूर्णिमा से माघ मेला शुरू हो गया है। इस मेले को अर्ध कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान कल्पवास का अधिक महत्व होता है। जानिए माघ मेला का महत्व और माघ मेला स्नान तिथि 2023।

प्रमुख स्नान पर्व 

  • पौष पूर्णिमा- 6 जनवरी 2023
  • मकर संक्रांति-14 या 15 जनवरी 2023
  • मौनी अमावस्या 21 जनवरी 2023
  • माघी पूर्णिमा- 5 फरवरी 2023
  • महाशिवरात्रि- 16 फरवरी 2023

माघ मेला महत्व

गंगा, यमुना और सरस्वती के तट पर लगने वाले माघ मेले में हर साल देश-दुनिया से करीब 50 लाख श्रद्धालु आते हैं। यात्रा के दौरान श्रद्धालु स्नान और दान-पुण्य करते हैं। लाखों श्रद्धालु कल्पवास करते हैं।

हर साल गंगा, यमुना और सरस्वती के तट पर अर्ध कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। संगम भारत के सबसे धार्मिक तीर्थस्थलों में से एक है। और माघ मेला दुनिया के सबसे बड़े मेले में से एक है। हिंदू पुराणों में भी इसका जिक्र है।

कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा है। प्रयाग का वर्णन रामायण, महाभारत और पुराणों में भी आता है। संगम तीरे माघ मेला हर साल जनवरी में यहां आयोजित किया जाता है।

मेले का अंतिम दिन 18 फरवरी 2023 यानी महाशिवरात्रि के दिन होगा।

प्रयागराज में ठहरने की सुविधा

माघ मेले में दर्शन के लिए आने वाले लोग पास में उपलब्ध आवास में रहना पसंद करते हैं। प्रयागराज धर्मशाला में भीड़ के कारण, हमारा सुझाव है कि आप यात्राधाम में अपने ठहरने की अग्रिम बुकिंग कर लें। धर्मशाला प्रमुख पर्यटक आकर्षणों के पास स्थित है और अंदर सबसे अच्छी सुविधाएं प्रदान करता है।

प्रयागराज रूम बुकिंग

माघ मेले के नियम (कल्पवास)

  • माघ के मेले में कल्पावासियों को संगम के किनारे झोपड़ी बनानी होगी।
  • इस दौरान जमीन पर सोना होता है और पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
  • कल्पवास में एक समय फल खाने या बिना भोजन किए रहने का प्रावधान है। इस दौरान खाना खुद ही बनाना पड़ता है।
  • कल्पवासियों को दिन में तीन बार स्नान और पूजा करनी पड़ती है। उसी के साथ हमारा सारा समय प्रभु की भक्ति में लगा रहना चाहिए।
  • कल्पवास की शुरुआत के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजा की जाती है। कल्पवासी अपने टेंट के बाहर जौ के बीज बोते हैं। इसके अंत में वह पौधे को अपने साथ ले जाते हैं और तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं।
  • मान्यता है कि कल्पवास प्रारंभ करने के बाद 12 वर्ष तक इसे जारी रखने की परंपरा है।
  • शास्त्रों में कहा गया है कि कल्पवास वही गृहस्थ करें जो सांसारिक मोह-माया से मुक्त हों और जो उत्तरदायित्वों से बोझिल न हों, क्योंकि इसमें त्याग को महत्वपूर्ण माना गया है, तभी व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • कल्पवासी के चार मुख्य कार्य स्नान, तप, हवन और दान हैं।

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Optima Travels
3 months ago

Excellent information about Kalpvas. Kumbh Mela is also a Magh Mela but on the grandest scale and has special configuration of the planets.

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CharDham

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Rann Utsav

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