गुड़ी पड़वा की हैं अनेक कथाये
गुड़ी ही विजय पताका कहलाये
पेड़ पौधों से सजता हैं चैत्र माह
इसलिए हिन्दू धर्म में यह नव वर्ष कहलाये
गुड़ी पड़वा त्योहार चंद्र कैलेंडर, चैत्र महीने के पहले दिन के अनुसार मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा 8 अप्रैल नए साल में महाराष्ट्र के मराठी लोगो की हिंदू संस्कृति है। त्योहार एक बहुत ही खास और रोचक इतिहास है।
इस त्यौहार को महाराष्ट्र में गुड़ी, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगाया, कश्मीर में नौ रोज़, पंजाब में बैसाखी, सिंधी में चेटी चाँद , बंगालमें नब बरसा, असममें गोरुम बिहू, तमिलनाडु में पुथुंदु और केरल में विशु से जाना जाता है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी तरह के उल्लेख अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में भी मिलते हैं। इसी दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती हैं।
लोक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान राम का और फिर युधिष्ठिर का राज्यारोहण किया गया था। इतिहास बताता है कि इस दिन मालवा के नरेश विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
इस दिन की शुरू आत भगवान की प्राथना के साथ भिन्न-भिन्न तेल-फवारे से की जाती हें| इस दिन एक पोल पर झंडा लगाया जाता है| महाराष्ट्र के इसे नए साल पर झंडे का रंग हरा या पीला रंग होता हें| उस के बाद उसी पोल के उपर एक सुन्दर हार पहनाया जाता हें जिस के साथ एक प्याला लगाया जाता हें| बाद में उस के साथ नीम के पत्ते, आम के पत्ते, लाल फूलकी माला गुडी पर लटकाई जाती हें| ज्यादा से ज्यादा, उसे झंडे के निचे के हिस्से पैर रंगोली बनाई जाती हें| एसा मन जाता हें की गुडी पडवा के दिन को शुभ मन जाता हें और तो और उसी दिन को वसंत रुतु के आगमन का प्रतिक माना जाता हें|