परिभाषा:
हवनात्मक अतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) प्रयोग में यजुर्वेद के 16वे पाठ का जाप किया जाता है। अर्थात रुद्री का 5वा अध्याय या “नमस्ते” पाठ का 14641 बार अध्ययन किया जाता हे। ये विभिन्न ग्रंथों के अनुसार पांच अलग-अलग तरीकों से किए गए दिखाए गए हैं –
- 161 मंत्र प्रयोग
- 44 मंत्र प्रयोग
- 48 मंत्र प्रयोग
- 425 मंत्र प्रयोग
- 16 मंत्र प्रयोग
हवनात्मक अतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) का महत्व
महादेव सर्वव्यापी और विशालकाय विशम् ब्रह्म परमात्मा है। पृथ्वी, जल, प्रकाश, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार इस परमात्मा के अलौकिक स्वरूप हैं। जबकि आत्मा परमात्मा का पारलौकिक स्वरूप है। इस पारलौकिक प्रकृति का अर्थ है “जीव या शिव”। ध्यान, भजन, जप, स्वाध्याय, पूजन, पथ, गृह-हवन और अभिषेक महादेव को प्रसन्न करने के साधन हैं।
उपरोक्त के अलावा, यह पूजा रोग से मुक्ति, बच्चों को सहन करने की क्षमता, तेज बुद्धि के लिए की जाती है। और धन में वृद्धि, शारीरिक पीड़ा से मुक्ति, शब्दों की आजादी और रिश्तों में समस्याओं से मुक्ति, रिश्तों में स्थिरता, शत्रुता का दमन करने के लिए की जाती है। अपारदर्शिता में वृद्धि, सांसारिक सुखों में वृद्धि और सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति।
हवनात्मक अतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) में क्या है?
भगवान श्री रूद्र के हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) का वर्णन यजुर्वेद संहिता में और रुद्र के प्रत्येक मंत्र में है। इसका वर्णन विभिन्न ग्रंथों में है। जैसे रुद्रकल्प, पराशर कल्प, शिव पुराण, रुद्र कल्प द्रुम, नारदपुराण, लिंगपुराण, महारुद्र तंत्र, रुद्रमाला मंत्र। रुद्री का वर्णन महाभारत और रामायण में भी है। इन सभी अलग-अलग ग्रंथों में रुद्राभिषेक की पवित्रता का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा शुक्ल यजुर्वेदी रुद्राष्टाध्यायी को विभिन्न कर्मकांड पुस्तकों में अलग-अलग तरीकों से पवित्र किया गया है। इस शिव पूजा को भक्ति और विश्वास के साथ विभिन्न पुस्तकों में भजन और मंत्रों के माध्यम से भी सराहा गया है।
हवनात्मक अतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) के लाभ
- धार्मिक जल से अभिषेक रोग को ठीक करता है।
- दूध में शक्कर मिलकर अभिषेक करने से बुद्धि तेज होती है।
- गाय के घी से अभिषेक करने से सुख और धन में वृद्धि होती है।
- गंगाजल मिश्रित दूध से अभिषेक करने से सांसारिक विपदाएं दूर होती हैं।
- सरसों या किसी अन्य तेल से अभिषेक करने से शत्रु की बुद्धि नष्ट होती है।
- गन्ने के रस से अभिषेक करने से वाणी में अनुकूलता आती है।
- गंगा जल से अभिषेक मुक्ति देता है।
हवनात्मक अतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) कब कर सकते है?
पराशर स्मृति में मार्गशीर्ष, माघ, फागुन (सूद पक्ष), बैसाख और श्रावण के महीनों का शिव पूजा करने का उल्लेख है, ताकि वंश को आगे बढ़ाया जा सके। कार्तिक माह में शिव यज्ञ के सुनहरे लाभ बताए गए हैं। इन पूजाओं के अलावा, एक विशेष यज्ञ कर सकते हे जो कि अग्निचक्र और अहुति चक्र पर विचार करता है। वांछित फल प्राप्त करने के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को सबसे अच्छा बताया जाता है। ‘अतुलम सुख मसनूते ‘का अर्थ ‘बहुत फलदायी’ होता है।
हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) के लिए सामग्री
चंदन | कुमकुम | अबील | गुलाल | चीनी | सुपारी | नाड़ाछड़ी |
रुई | माचिस | अगरबत्ती | सुत्तर का धागा | सुगन्धि | तेज पता | कमलककड़ी |
हवनकुंड | समीध | छोटे पडीया | बड़े पडीया | मीडियम पड़िया | इत्र | केसर |
कपूर की गोटी | सूखा गोबर | लकड़ीया | श्री फल | जानोई जोटा |
पूजा के लिए बर्तन
पित्तल का पतेला | तांबे का कलश | तांबे का तरभाना | कांसे का कटोरा |
सूची–सर्वा | तरभानु–आचमनी–पंचपत्र | ताँबे–चाँदी–आर्यन सर्प | कांसे की थाली |
स्थापना के लिए कपड़ा
लाल | सफ़ेद | भूरा | हरा |
केसरी | बदामी | पीला | गुलाबी |
फूल और फल
दालचीनी | लोंग | इलायची | काला अंगूर | हरे अंगूर |
काजू | बादाम | मूँगफली | गेहु | चावल |
मूंग | चना | तुर दाल | काले तिल | सफ़ेद तिल |
उरद दाल | गोल | घी | जौ | फूल |
पट्टिहार-5 | बड़ेहार-2 | तुलसी | दर्भ | धरो |
पंचपल्लव | नागरवेल के पते | हरे फल | सूखा बेल | चना–उरद–जार |
घर से तैयारी
गणेश जी की मूर्ति | शिवलिंग | बाजोट-2 | पाटली-2 | थाली – 5 | कटोरे-5 |
तांबे का लोटा | आसन | पाथरनु | रूई | माचिस | अगरबत्ती |
नेपकीन | पंचामृत | खेस | चुनरी | गंगाजल |
यह पूजा कैसे की जाती है?
यह पूजा एक विशेष स्थान पर की जानी चाहिए, जहां 16 मंडप बनाने पड़ते है। उसके बाद ज्ञानियों (ब्रह्मवेत्ता) ब्राह्मणों के मार्गदर्शन के साथ शास्त्रों में बताए अनुसार एक यज्ञशाला का निर्माण किया जाना चाहिए।
पूजा का समय
हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) न्यूनतम 7 दिनों और अधिकतम 11 दिनों में किया जा सकता है।
पूजा के लिए कितने ब्राह्मण चाहिए?
हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) के लिए न्यूनतम 71 ब्राह्मण और अधिकतम 121 ब्राह्मण की जरूरत होती है।
हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि)का स्थान
हवनात्मकअतिरुद्रमहायग प्रयोग (इष्टि) किसी भी तीर्थ स्थान पर, किसी भी शिव मंदिर या एक खुले स्थान पर किया जा सकता है, जहां दोषों की जांच की गई है।