बद्रीनाथ मंदिर की कथा
🙏जय जय बद्री विशाल !🙏
इंसान के जीवन के चार पुरुषार्थ है धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष। धर्म के लिए लोग जाते हैं जगन्नाथपुरी, अर्थ प्राप्ति के लिए रामेश्वरम, काम के अर्थ द्वारका , और मुक्ति अंतिम आश्रय के लिए , मोक्ष की प्राप्ति के लिए बद्रीनाथ धाम आते हे। बद्रीनाथ मंदिर, हरिद्वार से ३४० किलोमीटर ऊपर की ओर स्थित हे , भगवान बद्रीनाथ चतुर्भुज पद्मासन में विराजमान हे। भगवान के मंदिर की रक्षा करती हे शेष नाग जैसी पहाड़ियाँ कितने भी ग्लेशियर आ गिरे मंदिर को जरा सी भी क्षति नहीं हो सकती। भगवान के चरणों में तप्त कुंड हे जहा यात्रीगण स्नान करते हे। शाश्त्र कहते हे राम अवतारमे राम लौट गए, कृष्ण अवतारमे कृष्ण लौट गए बुद्ध अवतारमे भी बुद्ध लौट गए लेकिन भगवान विष्णु बद्रीनाथ छोड़के गए हो ऐसा कही उल्लेख नहीं हे। भगवान आज भी यहाँ तप कर रहे हे।
चारधाम में से एक , भगवान विष्णु जहां स्वयं विराजमान है वह बद्रीनाथ धाम के बारे में चर्चा करने हम पहुंचे वहां के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल जी के पास। उन्होंने बताई मंदिर से जुडी रोचक कथाए। आइये इस ज्ञान का लाभ हम भी लेते हे।
बद्रीनाथ मंदिर की महिमा
चारधाम चार युगो के प्रतिक हे। सतयुग में बद्रीनाथ जी , त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर युग में भगवान कृष्ण तथा कलयुग में भगवान जग्गनाथजी। सतयुग से भगवान की तपस्या चली आ रही हे। सतयुग में जब राग, द्वेष, ईर्ष्या और अभिमान का अस्तित्व नहीं था तब भगवान साक्षात् दर्शन देते थे। त्रेता युग के चरण में भगवान मात्र ऋषि मुनि को दर्शन देते थे। द्वापर युग के जाते जाते ऋषि मुनि भी दर्शन के लिए दुर्लभ थे इसी कारण ऋषि मुनि द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया और भगवान विष्णु के पास गए। द्वापर युग के अंत में विधर्मी ओं से भगवान की मूर्ति को बचाने के लिए नारद कुंड में विसर्जित कर दिया गया। बाद में शंकराचार्य द्वारा मूर्ति की स्थापना की गई मूर्ति के इतने सालो तक पानी में रहने से आकर बदल गया जिसकी फरियाद शंकराचार्य द्वारा करि तब आकाशवाणी हुई की इसी मूर्ति की स्थापना की जाए इस मूर्ति में जिसे भगवान ब्रह्म के रूप में दिखे उन के लिए वे ब्रह्म हे, जिसे शिवजी के रूप में दिखे उन के लिए वे शिव है , जिसे गणेश दिखे उन के लिए वे गणेश हे , जिसे नरसिंह दिखे इसके लिए वह नरसिंह है और जिसे साक्षात् विष्णु दिखे उन के लिए वे विष्णु हे। इस प्रकार भगवान की उसी मूर्ति की स्थापना की गयी हे। भगवान की सुन्दर आखे नहीं , सुन्दर मुख नहीं , जटा मंडल दिव्या दीखता हे , भगवान चतुर्भुज के दो हाथ पद्मासन में रखे हैं और दो हाथ ऊपर की और जिसमें शंख और चक्र नहीं हे भगवान विष्णु तप कर रहे हे।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया वीडियो देखें।
कपाट खुलने और बंध करने की विधि कैसे निश्चित की जाती हे ?
जैसा की सब जानते हैं मंदिर ६ माह बंद रहता है और ६ माह भगवान भक्तों को दर्शन देते हे। मंदिर के धर्माधिकारी द्वारा सभा में पंचांग के अभ्यास के बाद तिथि निश्चित की जाती हे। इस सभा में महात्मा , रावलजी , सरकार के प्रतिनिधि और कई सारे उच्च कोटी के लोग उपस्थित होते हे। जब सूर्य देवता वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हे तबके तीन चार दिन बाद ये सभा होती हे जिसमे से सबकी सन्मति के साथ एक तिथि तै की जाती हे उस दिन कपाट बांध किये जाते हे। कपाट बंध होने के समय भगवान की मूर्ति को घी का लेप लगाया जाता हे। उसके साथ भगवान के लिए माला गाओकी लड़कियों के द्वारा कम्बल तैयार किया जाता हे जिसे धृत अवस्था यानि की घी में डूबोके ओढ़ाया जाता हे जो भगवान को ठण्ड से बचाता हे। मूर्ति को छूने का अधिकार सिर्फ रावल जी को होता हे। कपाट बंद होने के समय रावलजी द्वारा माता लक्ष्मी जी को बद्री पंचायत लाया जाता हे। उनके साथ नर – नारायण और नारदजी का भी बद्री पंचायत में समावेश होता हे। और कुबेर जी एवम उद्धवजी की गद्दी पांडुकेश्वर की और उठती हे तथा गरुड़जी जोशीमठ में बिराजते हे ।
कैसे तय होती है कपाट खुलने और बंद होने की तारीख?
कपाट खुलने की तिथि वसंत पंचमी के दिन महाराजा केरी के दरबार में परंपरागत रूप से तय की जाती है । वहाँ कृष्ण प्रसाद उनियाल जी द्वारा भगवान विष्णु की कुंडली का अभ्यास करके तिथि निश्चित की जाती हे। सबसे पहले गंगोत्री यमुनोत्री के कपाट खुलते हैं , उसके बाद केदारनाथ धाम के द्वार खुलते हैं और आखिर में बद्रीनाथ धाम के द्वार खोले जाते हे।
कपाट बंध करते समय देवी लक्ष्मीजी को बद्रीश पंचायत क्यों लाया जाता हे ?
जोशीमठ से भगवान बद्री विशालकी गद्दी उठती हे। गद्दी के साथ गरुड़जी भी होते हे, गद्दी का विराम पांडुकेश्वर में किया जाता हे । दूसरे दिन कुबेरजी और उद्धवजी को साथ लेते बद्रीनाथ धाम पहोचते हे । राजगुरु नौटियाल द्वारा धाम के द्वार पर पहेली चाबी लगाई जाती है । उसके बाद पांडुकेश्वर के लोगों के द्वारा दूसरी चाबी लगाई जाती हे। भगवान के कपाट श्रीमान रावल जी द्वारा खोले जाते हे। भगवान का द्वार खुलते ही सामने दीपक प्रज्वलित दीखता हे। जब मंदिर बंध होता हे तभी भी ये दीपक अखंड रूप से प्रज्वलित होता हे । जिस के दर्शन का बड़ा ही महत्व हे। इस प्रज्जवलित दीपक को देखने के लिए भक्तो की भारी भीड़ उपस्थित रहती हे । कपाट खुलने के बाद मूर्ति की अवस्था को परखा जाता हे मूर्ति अगर तर अवस्थामे हो यानीं की गीली हो तो आने वाले साल को बड़ा ही शुभ माना जाता हे। अगर सुखी हो तो यात्रा में विघ्न की सम्भावनाये होने की मान्यता की जाती हे।
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