Saturday, April 20, 2024
HomeChardhamBadrinath Temple History in Hindi | कथा श्री बद्रीनाथ धाम की

Badrinath Temple History in Hindi | कथा श्री बद्रीनाथ धाम की

जय जय बद्री विशाल !

इंसान के जीवन के चार पुरुषार्थ है धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष। धर्म के लिए लोग जाते हैं जगन्नाथपुरी, अर्थ प्राप्ति के लिए रामेश्वरम, काम के अर्थ द्वारका , और मुक्ति अंतिम आश्रय के लिए , मोक्ष की प्राप्ति के लिए बद्रीनाथ धाम आते हे। बद्रीनाथ मंदिर, हरिद्वार से ३४० किलोमीटर ऊपर की ओर स्थित हे , भगवान बद्रीनाथ चतुर्भुज पद्मासन में विराजमान हे। भगवान के मंदिर की रक्षा करती हे शेष नाग जैसी पहाड़ियाँ कितने भी ग्लेशियर आ गिरे मंदिर को जरा सी भी क्षति नहीं हो सकती। भगवान के चरणों में तप्त कुंड हे जहा यात्रीगण स्नान करते हे।

बद्रीनाथ मंदिर की कथा

शाश्त्र कहते हे राम अवतारमे राम लौट गए, कृष्ण अवतारमे कृष्ण लौट गए बुद्ध अवतारमे भी बुद्ध लौट गए लेकिन भगवान विष्णु बद्रीनाथ छोड़के गए हो ऐसा कही उल्लेख नहीं हे। भगवान आज भी यहाँ तप कर रहे हे।

चारधाम में से एक , भगवान विष्णु जहां स्वयं विराजमान है वह बद्रीनाथ धाम के बारे में चर्चा करने हम पहुंचे वहां के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल जी के पास। उन्होंने बताई मंदिर से जुडी रोचक कथाए। आइये इस ज्ञान का लाभ हम भी लेते हे।

बद्रीनाथ मंदिर की महिमा

चारधाम चार युगो के प्रतिक हे। सतयुग में बद्रीनाथ जी , त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर युग में भगवान कृष्ण तथा कलयुग में भगवान जग्गनाथजी। सतयुग से भगवान की तपस्या चली आ रही हे। सतयुग में जब राग, द्वेष, ईर्ष्या और अभिमान का अस्तित्व नहीं था तब भगवान साक्षात् दर्शन देते थे।

त्रेता युग के चरण में भगवान मात्र ऋषि मुनि को दर्शन देते थे। द्वापर युग के जाते जाते ऋषि मुनि भी दर्शन के लिए दुर्लभ थे इसी कारण ऋषि मुनि द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया और भगवान विष्णु के पास गए। द्वापर युग के अंत में विधर्मी ओं से भगवान की मूर्ति को बचाने के लिए नारद कुंड में विसर्जित कर दिया गया।

बाद में शंकराचार्य द्वारा मूर्ति की स्थापना की गई मूर्ति के इतने सालो तक पानी में रहने से आकर बदल गया जिसकी फरियाद शंकराचार्य द्वारा करि तब आकाशवाणी हुई की इसी मूर्ति की स्थापना की जाए।

इस मूर्ति में जिसे भगवान ब्रह्म के रूप में दिखे उन के लिए वे ब्रह्म हे, जिसे शिवजी के रूप में दिखे उन के लिए वे शिव है , जिसे गणेश दिखे उन के लिए वे गणेश हे , जिसे नरसिंह दिखे इसके लिए वह नरसिंह है और जिसे साक्षात् विष्णु दिखे उन के लिए वे विष्णु हे।

इस प्रकार भगवान की उसी मूर्ति की स्थापना की गयी हे। भगवान की सुन्दर आखे नहीं , सुन्दर मुख नहीं , जटा मंडल दिव्या दीखता हे , भगवान चतुर्भुज के दो हाथ पद्मासन में रखे हैं और दो हाथ ऊपर की और जिसमें शंख और चक्र नहीं हे भगवान विष्णु तप कर रहे हे।

बद्रीनाथ के बारे में पुराण क्या कहते हैं?

बद्रीनाथ का महत्व इतना है कि इसका उल्लेख कई पुराणों, महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

  • भागवत पुराण कहता है कि भगवान विष्णु सभी जीवों के कल्याण के लिए सहस्राब्दियों से नर और नारायण के रूप में ध्यान कर रहे हैं।
  • महाभारत में कहा गया है कि बद्रीनाथ के पास आने मात्र से ही मोक्ष मिल जाता है।
  • स्कंद पुराण कहता है, ‘स्वर्ग और पृथ्वी पर कई तीर्थ और पवित्र स्थल हैं, लेकिन बद्रीनाथ जैसा कोई नहीं है।’
  • पद्म पुराण कहता है कि बद्रीनाथ के आसपास का क्षेत्र आध्यात्मिक खजाने से भरा है। मंदिर के बारे में तमिल ग्रंथ नलयिरा दिव्य प्रबंधम में भी लिखा गया है।

सप्त बद्री

यह सप्त बद्री भगवान विष्णु के सात मंदिरों का एक समूह है जो उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित हैं। परंपरागत रूप से, यह चारधाम यात्रा पर जाने वाला अंतिम स्थान है। यह सप्त-बद्री मंदिरों में से पहला है।

सप्त बद्री में अन्य दो बद्री योगध्यान बद्री और अर्ध बद्री हैं। बद्रीनाथ मंदिर प्रमुख पंच बद्री स्थानों में से एक है। वे इस प्रकार हैं:

स्थानपंच बद्री
बद्रीनाथबद्रीनाथ या बद्री विशाल
पांडुकेश्वरध्यान बद्री
सुभाईभविष्य बद्री
जोशीमठवृद्ध बद्री
कर्णप्रयाग (निकट)आदि बद्री

बद्रीनाथ से गंगोत्री की दूरी भी देखें

बद्रीनाथ धाम जाने का सबसे अच्छा समय

मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जुलाई तक है। मानसून के दौरान भूस्खलन और सड़क अवरोध होते हैं, फिर भी आप बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

बद्रीनाथधाम जाने का सबसे अच्छा समय देखें

अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया वीडियो देखें।

कपाट खुलने और बंध करने की विधि कैसे निश्चित की जाती हे ?

जैसा की सब जानते हैं मंदिर ६ माह बंद रहता है और ६ माह भगवान भक्तों को दर्शन देते हे। मंदिर के धर्माधिकारी द्वारा सभा में पंचांग के अभ्यास के बाद तिथि निश्चित की जाती हे। इस सभा में महात्मा , रावलजी , सरकार के प्रतिनिधि और कई सारे उच्च कोटी के लोग उपस्थित होते हे।

जब सूर्य देवता वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हे तबके तीन चार दिन बाद ये सभा होती हे जिसमे से सबकी सन्मति के साथ एक तिथि तै की जाती हे उस दिन कपाट बांध किये जाते हे। कपाट बंध होने के समय भगवान की मूर्ति को घी का लेप लगाया जाता हे। उसके साथ भगवान के लिए माला गाओकी लड़कियों के द्वारा कम्बल तैयार किया जाता हे जिसे धृत अवस्था यानि की घी में डूबोके ओढ़ाया जाता हे जो भगवान को ठण्ड से बचाता हे।

मूर्ति को छूने का अधिकार सिर्फ रावल जी को होता हे। कपाट बंद होने के समय रावलजी द्वारा माता लक्ष्मी जी को बद्री पंचायत लाया जाता हे। उनके साथ नर – नारायण और नारदजी का भी बद्री पंचायत में समावेश होता हे। और कुबेर जी एवम उद्धवजी की गद्दी पांडुकेश्वर की और उठती हे तथा गरुड़जी जोशीमठ में बिराजते हे ।

कैसे तय होती है कपाट खुलने और बंद होने की तारीख?

कपाट खुलने की तिथि वसंत पंचमी के दिन महाराजा केरी के दरबार में परंपरागत रूप से तय की जाती है । वहाँ कृष्ण प्रसाद उनियाल जी द्वारा भगवान विष्णु की कुंडली का अभ्यास करके तिथि निश्चित की जाती हे। सबसे पहले गंगोत्री यमुनोत्री के कपाट खुलते हैं , उसके बाद केदारनाथ धाम के द्वार खुलते हैं और आखिर में बद्रीनाथ धाम के द्वार खोले जाते हे।

badrinath temple diya

कपाट बंध करते समय देवी लक्ष्मीजी को बद्रीश पंचायत क्यों लाया जाता हे ? 

जोशीमठ से भगवान बद्री विशालकी गद्दी उठती हे। गद्दी के साथ गरुड़जी भी होते हे, गद्दी का विराम पांडुकेश्वर में किया जाता हे । दूसरे दिन कुबेरजी और उद्धवजी को साथ लेते बद्रीनाथ धाम पहोचते हे ।

राजगुरु नौटियाल द्वारा धाम के द्वार पर पहेली चाबी लगाई जाती है । उसके बाद पांडुकेश्वर के लोगों के द्वारा दूसरी चाबी लगाई जाती हे। भगवान के कपाट श्रीमान रावल जी द्वारा खोले जाते हे। भगवान का द्वार खुलते ही सामने दीपक प्रज्वलित दीखता हे।

जब मंदिर बंध होता हे तभी भी ये दीपक अखंड रूप से प्रज्वलित होता हे । जिस के दर्शन का बड़ा ही महत्व हे। इस प्रज्जवलित दीपक को देखने के लिए भक्तो की भारी भीड़ उपस्थित रहती हे ।

कपाट खुलने के बाद मूर्ति की अवस्था को परखा जाता हे मूर्ति अगर तर अवस्थामे हो यानीं की गीली हो तो आने वाले साल को बड़ा ही शुभ माना जाता हे। अगर सुखी हो तो यात्रा में विघ्न की सम्भावनाये होने की मान्यता की जाती हे।

बद्रीनाथ से दूरी

  • जोशीमठ – 41 किमी
  • श्रीनगर – 185 किमी
  • ऋषिकेश – 290 किमी
  • हरिद्वार – 310 किमी
  • देहरादून – 330 किमी

ये दूरियाँ चुने गए मार्ग और वाहन के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती हैं।

बद्रीनाथ में कहाँ ठहरें?

तो आइये आप भी भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करके वहां की दिव्यता का अनुभव कीजिये , YatraDham.Org से जुड़िये और अपनी यात्रा बुक करे।

यहां हरिद्वार से बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान आवास उपलब्ध है।

हरिद्वारऋषिकेश
श्रीनगररुद्रप्रयाग
चोपतागोविंदघाट
चमोलीउखीमठ
जोशीमठबद्रीनाथ मार्ग
बद्रीनाथउत्तराखंड

आशा है बद्रीनाथ के बारे में यह जानकारी आपके काम आएगी। कृपया बेझिझक हमसे कोई और प्रश्न पूछें। धन्यवाद!

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
- Advertisment -
CharDham

Most Popular

- Advertisment -
Rann Utsav

Recent Comments

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x